मेरे मन की गंगा, और तेरे मन की जमुना का
बोल राधा बोल संगम होगा के नहीं
कितनी सदियाँ बीत गयी है, हाय तुजे समाजाने में
मेरे जैसा धीराजवाला हैं कोइ और जमाने में
दिल का बढ़ता बोज़ कभी कम होगा के नहीं
दो नदियों का मेल अगर इतना पावन कहलाता है
क्यों ना जहा दो दिल मिलते है, स्वर्ग वहा बस जाता है
हर मौसम हैं प्यार का मौसम होगा के नहीं
तेरी खातिर मैं तदपा यूं तरसे धरती सावन को
राधा राधा एक रतन है, सांस की आवन जावन को
पत्थर पिघले दिल तेरा नाम होगा के नहीं
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