ज्योत से ज्योत जगाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आये जो दीं दुखी
सब को गले से लगा ते चलो
कौन हैं उंचा, कौन हैं नीचा, सब में वो ही समाया
भेदभाव के जूठें भरम में, ये मानव भरमाया
धरम ध्वजा फहराते चलो
सारे जग के कनकन में है, दिव्य अमर एक आत्मा
एक बरम्ह है, एक सत्य है, एक ही हैं परमात्मा
परानों से परं मिलाते चलो
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